अब समय आ गया है कि क़ानून में राजद्रोह की परिभाषा तय की जाए: सुप्रीम कोर्ट
- महेश गुप्ता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब समय आ गया है कि क़ानून में राजद्रोह की व्याख्या तय की जाए। मतलब यह कि सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि सरकार द्वारा बात बात में राजद्रोह का मामला लगाना गलत है। राजद्रोह उन्हीं मामलों में लगाया जाना चाहिए जिनमें वाकई सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए हिंसात्मक तरीके से की गई कोशिश हो।आंध्र प्रदेश के दो टीवी चैनलों पर राजद्रोह का मामला लगाए जाने के बाद इससे जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने आदेश जारी कर कहा कि इन चैनलों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, 'इन दो टेलीविज़न चैनलों पर राजद्रोह का मामला लगाया जाना उनकी आवाज को दबाना है, इसके साथ ही हमें राजद्रोह की सीमा तय करनी चाहिए।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया के अधिकारों के संदर्भ में राजद्रोह कानून की व्याख्या की समीक्षा करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के आरोप को लेकर दो तेलुगू समाचार चैनलों टीवी 5 और एबीएन आंध्रज्योति के खिलाफ किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी। इस मामले में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के बागी सांसद के रघु राम कृष्ण राजू के 'आपत्तिजनक' भाषण प्रसारित करने के पर आंध्र प्रदेश पुलिस ने इन दोनों चैनलों के खिलाफ राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज किया है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट की तीन सदस्यीय विशेष बेंच ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि आईपीसी, यानी कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) और 153 (विभिन्न वर्गों के बीच कटुता को बढ़ावा देना) की व्याख्या की जरूरत है, खासकर प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर।''
सुप्रीम कोर्ट ने एफ़आइआर के संबंध में आंध्र प्रदेश पुलिस को इन चैनलों और उनके कर्मचारियों के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया। पीठ ने चैनलों की याचिकाओं पर राज्य सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। इन चैनलों के खिलाफ राजद्रोह सहित विभिन्न अपराधों के लिए आरोप लगाए गए हैं। दोनों मीडिया हाउस ने आंध्र प्रदेश में राजद्रोह के मामले में अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध करते हुए हाल में शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी।
एक मीडिया हाउस ने दावा किया कि यह प्रयास राज्य में समाचार चैनलों को ‘‘डराने'' का एक प्रयास है ताकि वे सरकार की आलोचना वाली सामग्री को दिखाने से बचें। टीवी 5 समाचार चैनल की स्वामी श्रेया ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि राज्य ऐसी ‘‘भ्रामक प्राथमिकी'' दर्ज कर और कानून का दुरुपयोग कर अपने आलोचकों और मीडिया का ‘‘मुंह बंद करना'' चाहता है।
टीवी चैनल के खिलाफ एफ़आइआर का संबंध सांसद राजू के विरूद्ध दर्ज राजद्रोह के मामले से है जिन्हें पहले ही आंध्र प्रदेश पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। चैनलों ने दावा किया कि यह एफ़आइआर राजू के बयानों को दिखाने के कारण दर्ज की गयी है, जो अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के आलोचक रहे हैं।
चैनलों ने आंध्र प्रदेश सरकार को अपने खिलाफ दर्ज मामले में चैनलों के प्रबंधन और कर्मचारियों के खिलाफ किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई से रोकने का अनुरोध किया है। अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने मामले में राजू को गिरफ्तार किया है और दोनों चैनलों को भी आरोपी बनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में सांसद राजू को पहले ही जमानत दे दी है।