पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) कानून 1991 के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस क़ानून को भेदभाव और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए जनहित याचिका में इस कानून की धारा 2, 3, 4 को संविधान का उल्लंघन ठहराते हुए इसे रद करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस कानून में अयोध्या में राम जन्मस्थान को छोड़ दिया गया, जबकि मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान को नहीं छोड़ा गया, ये दोनों विष्णु का अवतार हैं

याचिका में यह भी कहा गया है कि केन्द्र सरकार को यह कानून बनाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान मे तीर्थस्थलों को राज्य सरकार का विषय बताया गया है। साथ ही पब्लिक आर्डर भी राज्य का विषय है, इसलिए केन्द्र सरकार ने इस पर कानून बनाकर राज्य के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण किया है।

याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट एतिहासिक तथ्यों, अंतर्राष्ट्रीय संधियों, कानूनी प्रावधानों तथा हिन्दू, जैन बौद्ध व सिखों के अधिकारों को संरक्षित करते हुए उनके धार्मिक स्थलों को पुर्नस्थापित करे। पूजा स्थल कानून की धारा 2, 3 व 4 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन घोषित करते हुए रद करे, क्योंकि इन प्रावधानों में आक्रमणकारियों द्वारा गैरकानूनी रूप स्थापित किये गये पूजा स्थलों को कानूनी मान्यता दी गई है।

याचिका में कहा गया है कि केन्द्र ने 11 जुलाई 1991 को इस कानून को लागू किया, जिसमें मनमाने और अतार्किक ढंग से पूर्ववर्ती तिथि से कटआफ डेट तय करते हुए घोषित कर दिया कि पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी वही रहेगी। याचिकाकर्ता का कहना है कि केन्द्र न तो कानून को पूर्व तिथि से लागू कर सकता है और न ही लोगों को ज्युडिशियल रेमेडी से वंचित कर सकता है। कहा गया है कि तीर्थस्थल राज्य का विषय है। यह संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची का विषय है। इसलिए केन्द्र को ये कानून बनाने का अधिकार नहीं है। केन्द्र ने क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण किया है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद में फैसला सुनाया। कोर्ट ने हिन्दुओं के दावे में सार पाया। अगर अयोध्या का फैसला नहीं आता, तो हिन्दुओं को न्याय नहीं मिलता। इसलिए कानून में कोर्ट जाने से प्रतिबंधित करना गलत और कानून के शासन के सिद्धांत के खिलाफ है।

स्थल (विशेष प्रावधान) कानून 1991 के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस क़ानून को भेदभाव और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए जनहित याचिका में इस कानून की धारा 2, 3, 4 को संविधान का उल्लंघन ठहराते हुए इसे रद करने की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि इस कानून में अयोध्या में राम जन्मस्थान को छोड़ दिया गया, जबकि मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान को नहीं छोड़ा गया, ये दोनों विष्णु का अवतार हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि केन्द्र सरकार को यह कानून बनाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान मे तीर्थस्थलों को राज्य सरकार का विषय बताया गया है। साथ ही पब्लिक आर्डर भी राज्य का विषय है, इसलिए केन्द्र सरकार ने इस पर कानून बनाकर राज्य के क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण किया है।

याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट एतिहासिक तथ्यों, अंतर्राष्ट्रीय संधियों, कानूनी प्रावधानों तथा हिन्दू, जैन बौद्ध व सिखों के अधिकारों को संरक्षित करते हुए उनके धार्मिक स्थलों को पुर्नस्थापित करे। पूजा स्थल कानून की धारा 2, 3 व 4 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन घोषित करते हुए रद करे, क्योंकि इन प्रावधानों में आक्रमणकारियों द्वारा गैरकानूनी रूप स्थापित किये गये पूजा स्थलों को कानूनी मान्यता दी गई है।

याचिका में कहा गया है कि केन्द्र ने 11 जुलाई 1991 को इस कानून को लागू किया, जिसमें मनमाने और अतार्किक ढंग से पूर्ववर्ती तिथि से कटआफ डेट तय करते हुए घोषित कर दिया कि पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों की जो स्थिति 15 अगस्त 1947 को थी वही रहेगी।

याचिकाकर्ता का कहना है कि केन्द्र न तो कानून को पूर्व तिथि से लागू कर सकता है और न ही लोगों को ज्युडिशियल रेमेडी से वंचित कर सकता है। कहा गया है कि तीर्थस्थल राज्य का विषय है। यह संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची का विषय है। इसलिए केन्द्र को ये कानून बनाने का अधिकार नहीं है। केन्द्र ने क्षेत्राधिकार का अतिक्रमण किया है।

याचिकाकर्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या विवाद में फैसला सुनाया। कोर्ट ने हिन्दुओं के दावे में सार पाया। अगर अयोध्या का फैसला नहीं आता, तो हिन्दुओं को न्याय नहीं मिलता। इसलिए कानून में कोर्ट जाने से प्रतिबंधित करना गलत और कानून के शासन के सिद्धांत के खिलाफ है।