हाईकोर्ट जज ने उड़ाया कानून का मजाक, सुप्रीम कोर्ट ने जज को क्रिमिनल केसों की सुनवाई से हटाया
- महेश गुप्ता

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज प्रशांत कुमार के आदेश को हैरान करने वाला बताते हुए उसे रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जस्टिस प्रशांत कुमार से सभी आपराधिक मामले वापस ले लिए जाएं और उनके सेवानिवृत्त होने तक उन्हें सुनवाई के लिए आपराधिक मामले न सौंपे जाएं तथा उन्हें सीनियर जजों की बेंच में बिठाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से ये भी कहा है कि जस्टिस प्रशांत कुमार को किसी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाया जाए और यदि कभी जस्टिस प्रशांत कुमार को अकेले पीठ में भी बैठाया जाए, तो भी उन्हें सुनवाई के लिए आपराधिक मामले न सौंपे जाएं।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा, 'पूरे सम्मान और विनम्रता के साथ, हम यह कहने के लिए बाध्य हैं कि यह विवादित आदेश इस कोर्ट के जज के रूप में हमारे कार्यकाल में अब तक मिले सबसे बुरे और सबसे त्रुटिपूर्ण आदेशों में से एक है... संबंधित जज ने न केवल खुद को एक दयनीय स्थिति में पहुंचाया है, बल्कि न्याय का भी मजाक उड़ाया है। हम यह समझने में असमर्थ हैं कि हाई कोर्ट के स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गड़बड़ है।”
दरअसल इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार ने एक कंपनी के खिलाफ निचली अदालत द्वारा समन जारी करने के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया था। निचली अदालत के समन जारी करने के आदेश के खिलाफ आरोपी कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इस कंपनी पर दीवानी प्रकृति के एक व्यावसायिक लेनदेन में शेष राशि का भुगतान न करने का आरोप था।
हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रशांत कुमार ने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता को राशि वसूलने के लिए दीवानी उपाय अपनाने के लिए कहना अनुचित था, क्योंकि इसमें बहुत समय लगता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के जज की तरफ से पारित आदेश को 'त्रुटिपूर्ण' बताते हुए कहा कि हाईकोर्ट के जज ने अपने आदेश में यहां तक कहा है कि शिकायतकर्ता को शेष राशि की वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें एक कंपनी मेसर्स शिखर केमिकल्स द्वारा वाणिज्यिक लेनदेन के एक मामले में निचली अदालत के समन जारी करने के आदेश को रद्द करने की मांग वाली याचिका को हाईकोर्ट में खारिज कर दी गई थी।
इस मामले में, शिकायतकर्ता ललिता टेक्सटाइल्स ने शिखर केमिकल्स को 52.34 लाख रुपये मूल्य का धागा दिया था, इसमें से 47.75 लाख रुपये का भुगतान किया जाना था, लेकिन शेष राशि का भुगतान आज तक नहीं किया गया। ललिता टेक्सटाइल्स ने शेष राशि की वसूली के लिए निचली अदालत में एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद निचली अदालत में शिकायतकर्ता का बयान दर्ज किया गया और मजिस्ट्रेट ने आवेदक के खिलाफ समन जारी किया। आवेदक कंपनी ने निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि यह विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का है, लेकिन उच्च न्यायालय ने आवेदक की याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि हाई कोर्ट से यह अपेक्षा की जाती है कि वह कानून की इस सुस्थापित स्थिति को जाने कि सिविल विवादों के मामलों में शिकायतकर्ता को आपराधिक कार्यवाही का सहारा लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।