सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बीमा करवाने के लिए बीमा का अनुबंध भरोसे पर आधारित होता है, जिसके लिए जीवन बीमा लेने वाले व्यक्ति के लिये यह दायित्व हो जाता है कि वह हर वैसी जानकारियों का खुलासा बीमा के आवेदन फार्म मे करे जिनका बीमा संबंधित मुद्दों पर किसी प्रकार का असर हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के फैसले को रद्द करते हुए टिप्पणी की कि जीवन बीमा के आवेदन फार्म में बीमा लेने वाले व्यक्ति के द्वारा अपनी पुरानी बीमारी की जानकारी छिपाना गलत होगा

इस मामले में बीमा कंपनी ने बीमा पॉलिसी धारक की बीमारी से मौत होने पर मृतक की मां को ब्याज के साथ क्लेम की पूरी राशि का भुगतान करने के आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में याचिका दायर की थी, आयोग ने बीमा कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद बीमा कंपनी ने आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। इससे पहले राष्ट्रीय आयोग ने मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली जजों की बेंच ने कहा कि बीमा लेने के आवेदन फॉर्म में बीमा लेने वाले व्यक्ति को अपनी पुरानी बीमारियों का अलग से खुलासा करने की जरूरत होती है, ताकि बीमा कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर एक विचारशील निर्णय पर पहुंचने में सक्षम हो सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि‘बीमे का अनुबंध अत्याधिक भरोसे पर आधारित होता है, यह बीमा लेने के इच्छुक हर व्यक्ति का दायित्व हो जाता है कि वह संबंधित मुद्दे को प्रभावित करने वाली सारी जानकारियों का खुलासा करे, ताकि बीमा करने वाली कंपनी बीमांकिक जोखिम के आधार पर किसी विवेकपूर्ण निर्णय पर पहुंच सके। 

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि बीमा लेने वाले व्यक्ति ने अपनी पुरानी बीमारियों के बारे में जानकारियों का खुलासा नहीं किया था। बीमा लेने वाले ने यह भी नहीं बताया था कि बीमा पॉलिसी लेने के एक महीने पहले उसे खून की उल्टियां हुई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी द्वारा की गई जांच में पता चला कि बीमा धारक पुरानी बीमारियों से जूझ रहा था, जो उसे लंबे समय तक शराब पीने के कारण हुई थीं, उसने उन तथ्यों की भी जानकारी बीमा कंपनी को नहीं दी थी, जिनके बारे में वह भलीभांति अवगत था।