Supreme Court has held that someone cannot be prosecuted merely because the complainant happens to be from a Scheduled Caste or a Scheduled Tribe

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि घर की चारदीवारी में किसी अपमानजनक बात पर एससी-एसटी एक्ट नहीं लग सकता। अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति पर घर के अंदर कही गई अपमानजनक बात गवाह के अभाव में अपराध नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मामले में याचिकाकर्ता पर अनुसूचित जाति-जनजाति कानून के तहत दर्ज मुकदमा रद कर दिया

अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति पर घर के अंदर कही गई कोई अपमानजनक बात, जिसका कोई गवाह न हो, वह अपराध नहीं हो सकती

इस मामले में उत्तराखंड में एक महिला ने एक व्यक्ति पर घर के अंदर अपमानजनक बातें कहने का आरोप लगाया था, जिसपर पुलिस ने उस व्यक्ति के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति कानून के तहत सभी तरह की अपमानजनक बातें और धमकियां नहीं आतीं। इस कानून के तहत केवल वे मामले आते हैं जिनके चलते पीड़ित व्यक्ति समाज के सामने अपमान, उत्पी़ड़न या संत्रास झेलता है। अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिए अन्य लोगों की मौजूदगी में अपराध होना आवश्यक है।

सामान्य श्रेणी की जाति के व्यक्ति पर सिर्फ इसलिए केस नहीं दर्ज हो सकता, क्योंकि उस पर SC/ST समुदाय के किसी व्यक्ति ने आरोप लगाया है

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने कहा कि मामले में तथ्यों के दृष्टिगत अनुसूचित जाति-जनजाति (उत्पीड़न रोकथाम) अधिनियम के सेक्शन 3(1) के अनुसार अपराध नहीं हुआ, इसलिए मामले में दाखिल आरोप पत्र रद किया जाता है, लेकिन आरोपी के खिलाफ अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर मुकदमा चलाया जा सकता है। आरोपी पुरुष और शिकायतकर्ता महिला के बीच जमीन विवाद चल रहा था। दोनों ने इस संबंध में एक-दूसरे के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करवा हुआ था। बाद में महिला ने यह कहते हुए एससी/एसटी कानून के तहत व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज करा दिया कि पुरुष ने सहयोगियों के साथ मिलकर महिला को खेती करने से बलपूर्वक रोक दिया और उन्होंने महिला को जाति संबंधी गालियां भी दीं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुरुष पर घर की चारदिवारी के अंदर गाली-गलौज करने का आरोप है, न कि सार्वजनिक तौर पर। इसलिए, उसके खिलाफ एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई करना उचित नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि जब तक कोई व्यक्ति एससी/एसटी समुदाय के व्यक्ति को उसे जाति के आधार पर प्रताड़ित करने की मंशा से भला-बुरा नहीं कहता है और जब तक उत्पीड़न की घटना का कोई गवाह नहीं हो, तब तक किसी उच्च जाति के व्यक्ति के खिलाफ एससी/एसटी ऐक्ट के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारक) कानून की धारा-3 (1) के तहत याचिकाकर्ता आरोपी के खिलाफ मामला नहीं बनता और आरोप पत्र खारिज किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई अपमानजनक कृत्य खुले में होता है और उसे अन्य लोग देख-सुन लेते हैं, तो वह एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में आ जाएगा।