नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शहरों से लेकर दूरदराज तक के आफिसों में यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण से लेकर जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को निर्देश दिया है कि वे ऐसी महिलाओं को सरकारी, निजी या व्यक्तिगत फर्मों की आंतरिक समितियों या शी-बॉक्स के पास शिकायत दर्ज कराने में सहायता प्रदान करें

जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस एन के सिंह की बेंच ने नालसा, एसएलएसए के साथ-साथ जिला और तालुका स्तर पर गठित प्राधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा है कि वे कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकार किसी भी महिला को कार्यस्थल पर गठित आंतरिक समिति के समक्ष अपनी शिकायत प्रभावी ढंग से दर्ज कराने की सुविधा प्रदान करें। साथ ही यदि ऐसा नहीं होता है तो कानून के अनुसार पीड़िता की सहायता करें।


एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने अदालत को बताया कि यौन उत्पीड़न इलेक्ट्रॉनिक (एसएचई) बॉक्स पोर्ट हर महिला को उसकी कार्य स्थिति के बावजूद वन-स्टॉप एक्सेस देता करता है, चाहे वह संगठित या असंगठित, निजी या सार्वजनिक क्षेत्र में हो और यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायत दर्ज कराने की सुविधा प्रदान करता है। हालांकि न्यायमित्र पद्मा प्रिया ने अदालत को बताया कि दूरदराज के क्षेत्र में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकार हुई महिला के लिए शी-बॉक्स तक पहुंच पाना संभव नहीं है, जहां इंटरनेट के माध्यम से शिकायत दर्ज की जा सकती है।


सुप्रीम कोर्ट ने सभी कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ-साथ तालुका स्तर तक की आधिकारिक मशीनरी को निर्देश दिया कि 'कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली महिला को शिकायत दर्ज कराने में प्रभावी रूप से सहायता और सुविधा प्रदान करें, ताकि ऐसी सहायता मांगे जाने पर वह शिकायत दर्ज करा सके। इस उद्देश्य के लिए, कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से पर्याप्त प्रचार किया जा सकता है। बेंच ने कहा कि उसे उम्मीद है कि सभी राज्यों के श्रम और महिला एवं बाल विकास विभाग और केंद्र 2013 के कानून के प्रभावी कार्यान्वयन में नालसा और एसएलएसए को सभी सहायता प्रदान करेंगे।