वसीयत को किसी आपसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
- महेश गुप्ता
सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में कहा है कि एक वसीयत को किसी आपसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया जा सकता है, इसे केवल भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत बताए गए तरीकों के अनुसार ही रद्द किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अभय एस ओका की बेंच ने कहा है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत उन आवश्यक अवयवों को स्पष्ट किया गया है जो वसीयत को रद्द करने के लिए जरूरी हैं।
इस मामले में मध्य प्रदेश में मांगीलाल नामक एक व्यक्ति ने मई 2009 में एक वसीयतनामा किया था, इसमें उसने अपनी जमीन का एक हिस्सा अपनी बेटी रामकन्या और जमीन का कुछ हिस्सा अपने भतीजों सुरेश, प्रकाश और दिलीप के नाम किया था। इसके बाद सुरेश और रामकन्या ने 12 मई 2009 को आपस में एक समझौता किया, जिसके तहत उन्होंने जमीन का आपस में बंटवारा कर लिया.
रामकन्या ने फरवरी 2011 को एक सेल डीड तैयार की जिसमें उन्होंने अपनी जमीन का हिस्सा बद्रीलाल को बेच दिया। इस मामले में बद्रीनाथ अपीलकर्ता हैं। निचली अदालत ने माना था कि सुरेश और रामकन्या के बीच समझौता अवैध था और रामकन्या को जमीन बेचने का कोई अधिकार नहीं था. निचली अदालत ने फरवरी 2011 के सेल डीड को निरस्त करार दिया था और कहा था कि यह सुरेश के लिए बाध्य नहीं होगा.
निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ दायर अपील को जिला न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके बाद अपीलकर्ता ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने भी उसकी अपील को खारिज कर दिया था.
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि धारा-70 के अनुसार वसीयत को किसी अन्य वसीयत या संहिता के जरिए निरस्त किया जा सकता है या वसीयतकर्ता की ओर से लिखित रूप में स्व वसीयत को रद्द करने के इरादे की घोषणा से या वसीयत को रद्द करने के इरादे से वसीयतकर्ता की उपस्थिति में और उसके निर्देश पर वसीयत को जलाने, फाड़ने या नष्ट करने पर ही निरस्त हो सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मांगीलाल की ओर से निष्पादित वसीयत को किसी अन्य वसीयत को निष्पादित करके रद्द नहीं किया गया था और न ही वसीयत को मांगीलाल की उपस्थिति व उनके निर्देश पर किसी व्यक्ति द्वारा जलाया या नष्ट किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक वसीयत को किसी आपसी समझौते के जरिए रद्द नहीं किया, बल्कि केवल भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-70 के तहत बताए गए तरीकों के अनुसार ही रद्द किया जा सकता है।