सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर आईपीसी की धारा 498A जो कि अब भारत न्याय संहिता की धारा 84 है, इसके दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताई है। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि पति और सास अक्सर ऐसी झूठी शिकायतों के डर में रहते हैं। मामला शादी के बाद डेढ़ महीने के अंदर पत्नी द्वारा पति और सास पर दर्ज कराई गई शिकायत का था।

जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी करते हुए कहा कि धारा 498A बहुत कठोर है और यह अक्सर दुरुपयोग की जाने वाला कानून है, यह पारिवारिक रिश्ते पर नींबू निचोड़ने जैसा असर डालती है।” सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी व पति और सास को मेडिएशन में शामिल होने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कई बार 498A के दुरुपयोग पर कई बार चिंता जताई है। इस क्रम में मई 2024 में जस्टिस पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने संसद से आग्रह किया था कि नई न्याय संहिता की धारा 85 व 86 (498A IPC) पर पुनर्विचार किया जाए।

इसके बाद दिसंबर 2024 में जस्टिस नागरत्ना की अलग-अलग बेंच ने कहा कि पति के पूरे परिवार को फंसाना गलत है और कई बार 498A को 376, 377 व 506 IPC जैसी धाराओं के साथ दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

इसी तरह फरवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना ठोस आरोपों के घरेलू विवादों में आपराधिक कानून लगाना परिवारों के लिए विनाशकारी हो सकता है। अप्रैल 2025 में जस्टिस सूर्यकांत और एन. कोटिश्वर ने 498A IPC की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा कि दुरुपयोग की संभावना से कानून असंवैधानिक नहीं हो जाता।

जून 2025 में जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने कई मामलों में अस्पष्ट आरोपों पर दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि हर रिश्तेदार को फँसाने की प्रवृत्ति, पत्नी की शिकायत की साख को कमजोर करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि सही मामलों में पीड़ित महिलाओं की सुरक्षा जरूरी है, लेकिन झूठे और सामान्य आरोपों से कानून का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।