भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने न्यायपालिका की ईमानदारी और स्वतंत्रता पर उठते सवालों को काफी गंभीरता से लिया है और रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद न लेने का भी फैसला किया है। चीफ जस्टिस ने कॉलेजियम सिस्टम की खामियां भी स्वीकार की है। चीफ जस्टिस बीआर गवई का मानना है कि रिटायर होने के बाद सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जज अगर सरकारी पद स्वीकार करते हैं, या सत्ता में आने के लिए चुनाव लड़ते हैं, तो इससे लोगों के बीच गलत संदेश जाता है, और जनता का न्यायपालिका पर बना भरोसा उठ सकता है।

चीफ जस्टिस का ये बयान पूर्व चीफ जस्टिस जस्टिस रंजन गोगोई और कलकत्ता हाईकोर्ट के जज अभिजीत गंगोपाध्याय की तरफ इशारा करता है. कभी न्यायपालिका का हिस्सा रहे ये । दोनों लोग फिलहाल सांसद हैं. रंजन गोगोई को राष्ट्रपति ने मनोनीत किया है, जबकि अभिजीत गंगोपाध्याय लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गये थे, और पूर्व मेदिनीपुर जिले के तामलुक से चुनाव लड़ कर संसद पहुंचे हैं.

जस्टिस बीआर गवई का कहना है कि ऐसे काम से लोगों को लगता है कि जजों ने अपने फैसले भविष्य में मिलने वाले पदों को ध्यान में रखकर किये थे.

भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई मान रहे हैं कि रिटायर होने के बाद जजों का सरकारी पद स्वीकार करने जैसे काम न्यायपालिका की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं, क्योंकि जनता को लगता है कि जजों ने भविष्य में ऐसे पद पाने के लिए ही फैसले दिये थे.

जस्टिस गवई कहते हैं, अगर कोई जज रिटायर होने के फौरन बाद कोई सरकारी पद स्वीकार करता है, या चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे देता है, तो कई सवाल उठते हैं… लोगों को लगता है कि न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं है… लगता है कि जज सरकार से फायदा लेने की कोशिश कर रहे हैं.

न्यायपालिका पर भरोसा बनाये रखने के लिए, जस्टिस गवई का कहना है, न्यायपालिका को केवल इंसाफ नहीं करना चाहिये, बल्कि ऐसा भी दिखना चाहिए कि ज्यूडिशियरी सच के साथ खड़ी है… लोगों के विश्वास से ही न्यायपालिका को ताकत मिलती है… ये भरोसा तभी बना रह सकता है, जब न्यायपालिका भी पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करे.