जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने देश के 50वें चीफ़ जस्टिस के तौर पर पदभार ग्रहण किया। बुधवार सुबह राष्ट्रपति भवन में हुए कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस चंद्रचूड़ को देश के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ग्रहण कराई। शपथ ग्रहण के बाद सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश की सेवा करना मेरी प्राथमिकता है। हम भारत के सभी नागरिकों के हितों की रक्षा करेंगे, चाहे वह तकनीक हो, रजिस्ट्री सुधार हो या न्यायिक सुधारों के मामले में हों।

 

ग़ौरतलब है कि जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ देश के 16वें चीफ जस्टिस थे। वाईवी चंद्रचूड़ का कार्यकाल 22 फरवरी 1978 से 11 जुलाई 1985 तक करीब सात साल रहा। यह किसी सीजेआई का अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल है। पिता के सेवानिवृत्त होने के 37 साल बाद उनके बेटे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी देश के चीफ़ जस्टिस बने हैं। यह सुप्रीम कोर्ट के भी इतिहास का पहला उदाहरण है कि पिता के बाद बेटा भी सीजेआई बना।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के फैसले चर्चित रहे हैं। इनमें वर्ष 2018 में विवाहेतर संबंधों (व्याभिचार कानून) को खारिज करने वाला फैसला शामिल है, 1985 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की पीठ ने सौमित्र विष्णु मामले में भादंवि की धारा 497 को कायम रखते हुए कहा था कि संबंध बनाने के लिए फुसलाने वाला पुरुष होता है न कि महिला। वहीं, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने 2018 के फैसले में 497 को खारिज करते हुए कहा था 'व्याभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है। शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है, फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे? व्याभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है क्योंकि यह विवाहित पुरुष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग बर्ताव करता है।'