कर्नाटक में शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने पर लगी रोक के खिलाफ दायर याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच सुनवाई करेगी। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बेंच में शामिल दोनों जजों की राय अलग अलग है। जहां जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन को सही ठहराया है, तो वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के बैन जारी रखने के आदेश को रद कर दिया। ऐसे में विरोधाभासी फ़ैसला आने से अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में बड़ी बेंच में भेजा गया है, इस मामले को तीन जजों की बेंच देखेगी। जब तक तीन जजों की बेंच का फैसला नहीं आ जाता, तब तक कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश जारी रहेगा, यानि हिजाब पर प्रतिबंध लागू रहेगा।

बता दें कि कर्नाटक में हिजाब विवाद जनवरी के शुरुआत में उडुपी के ही एक सरकारी कालेज से शुरू हुआ था, जहां मुस्लिम लड़कियों को हिजाब पहनकर आने से रोका गया था। स्कूल प्रबंधन ने इसे ड्रेस कोड के खिलाफ बताया था। इसके बाद अन्य शहरों में भी यह विवाद फैल गया। मुस्लिम लड़कियां इसका विरोध कर रही हैं, जिसके खिलाफ हिंदू संगठनों से जुड़े युवकों ने भी भगवा शॉल पहनकर जवाबी विरोध शुरू कर दिया था। एक कॉलेज में यह विरोध हिंसक झड़प में बदल गया था, जहां पुलिस को स्थिति नियंत्रण करने के लिए आंसू गैस छोड़नी पड़ी थी।

दो जजों की बैंच में अलग-अलग फ़ैसला सुनाने वाले जजों में जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को गलत बताया। उन्होंने हिजाब पहनना या न पहनना, ये पसंद का मामला है। लड़कियों की शिक्षा बहुत जरूरी है। जस्टिस धूलिया ने कहा कि धार्मिक प्रधाओं का मुद्दा विवाद के समाधान के लिए जरूरी नहीं था, वहां हाईकोर्ट ने गलत रास्ता अपनाया। ये अनुच्छेद 15 के बारे में था, ये पसंद की बात थी, इससे ज्यादा और कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि उनके दिमाग में सबसे अहम सवाल लड़कियों की शिक्षा थी और कहा कि क्या हम उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं?
इसके दूसरी तरफ़ जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर सभी 26 याचिकाओं को खारिज कर दिया। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि मेरी राय अलग है। उन्होंने कहा कि मैंने अपने आदेश में 11 सवाल तैयार किए हैं। पहला तो यही है कि क्या इस अपील को संविधान बेंच के पास भेजा जाना चाहिए?

इस मामले में सुनवाई के दौरान 21 वकीलों के बीच दस दिनों तक बहस चली थी। सुप्रीम कोर्ट में दायर विभिन्न याचिकाओं में से एक में बताया गया है कि सरकार और प्रशासन छात्राओं को अपने धर्मों का पालन करने देने में भेदभाव बरतते हैं। इससे कानून व्यवस्था बिगड़ने की परिस्थितियां पैदा होती हैं। एक अन्य याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में छात्र-छात्राओं को समानता के आधार पर क समान निर्धारित वेशभूषा पहननी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई में सबसे पहले कर्नाटक सरकार के उस सर्कुलर पर बहस छिड़ी जिसमें हिजाब पर बैन लगाने की बात हुई थी। अब याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट में जोर देकर कहा कि राज्य सरकार ने क्या सोचकर आजादी के 75 साल बाद यूं हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की सोची? ऐसे में किस आधार पर राज्य सरकार वो सर्कुलर लेकर आई थी, ये स्पष्ट नहीं हो पाया। दुनिया के दूसरे देशों के कुछ उदाहरण देकर भी हिजाब पहनने को सही ठहराया गया था। सुप्रीम कोर्ट के सामने अमेरिकी सेना के कुछ नियम बताए गए थे तो पश्चिम के दूसरे देशों में दिए गए अधिकारों का भी जिक्र हुआ था। कोर्ट को बताया गया कि अमेरिका में सेना में भर्ती लोगों को पगड़ी पहनने की इजाजत रहती है।

ग़ौरतलब है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने 14 मार्च को हिजाब विवाद पर फैसला सुनाया था, जिसमें कहा था कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। हाईकोर्ट ने आगे कहा था कि छात्र स्कूल या कॉलेज की निर्धारिक ड्रेस कोड पहनने से इनकार नहीं कर सकते।