उमर खालिद का भाषण अप्रिय और प्रथम दृष्टया स्वीकार्य नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट
- Kanoon Live
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अप्रिय और प्रथम दृष्टया स्वीकार्य नहीं था। ख़ालिद का यह भाषण फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के पीछे एक बड़ी साजिश के लिए उसके खिलाफ आपराधिक मामले का आधार बनता है।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस रजनीश भटनागर की बेंच ने कहा कि ख़ालिद के भाषण में कुछ बयान ‘‘आपराधिक प्रवृति’’ के थे और यह धारणा देते हैं कि केवल एक संस्था ने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।
हाईकोर्ट ने इस मामले में ख़ालिद की जमानत अर्जी पर दिल्ली पुलिस से जवाब मांगा है।दिल्ली पुलिस को जवाब दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय दिया और मामले को 27 अप्रैल को अगली सुनवायी के लिए सूचीबद्ध किया।
फरवरी 2020 में अमरावती में खालिद द्वारा दिए गए भाषण का एक हिस्सा उनके वकील ने पीठ के समक्ष पढ़ा. खालिद की इस टिप्पणी का जिक्र करते हुए कि ‘‘जब आपके पूर्वज दलाली कर रहे थे’’ कोर्ट ने कहा, ‘‘यह अप्रिय है. इन अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्या आपको नहीं लगता कि वे लोगों को उकसाते हैं?’’
कोर्ट ने कहा, ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ कोई दिक्कत नहीं है लेकिन आप क्या कह रहे हैं.’’ कोर्ट ने कहा, ‘‘यह आपत्तिजनक है. आपने इसे कम से कम पांच बार कहा … क्या आपको नहीं लगता कि यह समूहों के बीच धार्मिक उत्तेजना को बढ़ावा देता है? क्या गांधी जी ने कभी इस भाषा का इस्तेमाल किया था? क्या भगत सिंह ने इस भाषा को अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल किया था? क्या गांधी जी ने हमें यही सिखाया कि हम लोगों और उनके ‘पूर्वज’ के खिलाफ ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं?’’
हाईकोर्ट ने सवाल किया कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ‘‘अप्रिय बयानों’’ तक विस्तारित हो सकती है और क्या भाषण धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने के खिलाफ कानून को आकर्षित नहीं करता है. उसने कहा, ‘‘क्या अभिव्यक्ति की आजादी का विस्तार इस तरह के आपत्तिजनक बयान देने तक हो सकता है? क्या यह धारा 153 ए और धारा 153 बी (आईपीसी) के तहत नहीं आता है?
ग़ौरतलब है कि निचली अदालत ने 24 मार्च को खालिद को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि उसके खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं. निचली अदालत ने आरोपपत्र पर गौर किया था कि एक बाधाकारी ‘चक्का जाम’ की एक पूर्व नियोजित साजिश थी और 23 अलग-अलग स्थलों पर विरोध प्रदर्शन करने की योजना थी, जो टकराव वाले ‘चक्का जाम’ में तब्दील होनी थी और हिंसा को उकसाने वाली थी जिससे अंतत: दंगे होते।