बच्चों के खिलाफ यौन अपराध POSCO में 'स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट' ज़रूरी नहीं : सुप्रीम कोर्ट
- महेश गुप्ता
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के खिलाफ यौन अपराध की परिभाषा का दायरा तय करते हुए कहा कि स्किन टू स्किन कॉन्टेक्टजरूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट के बिना बच्चों के नाजुक अंगों को छूना POSCO कानून के तहत यौन शोषण है। किसी व्यक्ति का अपराधी की यौन इच्छा से बच्चे के यौन अंगों को छूना पोक्सो के तहत अपराध है। पॉक्सो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो क़ानून का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण से बचाना है। ऐसी संकीर्ण व्याख्या हानिकारक होगी। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें हाईकोर्ट एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि "एक नाबालिग लड़की के स्तन को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना POCSO क़ानून के तहत यौन उत्पीड़न नहीं है।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट के बिना POSCO क़ानून लागू होता है या नहीं, इस विवाद पर फैसला सुनाया है। जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रविंद्र भट्ट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने ये फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद 30 सितबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा पारित विवादास्पद फैसले के खिलाफ देश के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल द्वारा दाखिल याचिका समेत इस याचिका का समर्थन करते हुए महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग सहित कई अन्य पक्षकारों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की थी।
मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि "एक नाबालिग के स्तन को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना POCSO क़ानून के तहत यौन उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता है। यानि कि यौन उत्पीड़न के आरोपी और पीड़िता के बीच यदि सीधे स्किन टू स्किन का संपर्क नहीं होता है तो POSCO के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'पॉक्सो ऐक्ट के तहत अपराध मानने के लिए फिजिकल या स्किन कॉन्टेक्ट की शर्त रखना हास्यास्पद है और इससे POSCO कानून का मकसद ही पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, जिसे बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बनाया गया है।' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस परिभाषा को माना गया तो फिर ग्लव्स पहनकर रेप करने वाले लोग अपराध से बच जाएंगे। यह बेहद अजीब स्थिति होगी।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियम ऐसे होने चाहिए कि वे कानून को मजबूत करें, न कि उसके मकसद को ही खत्म कर दें।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि नाबालिग के अंदरूनी अंग को बिना कपड़े हटाए छूना तब तक सेक्सुअल असॉल्ट नहीं है, जब तक कि स्किन-से-स्किन का टच न हो। इस फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने 27 जनवरी को हाई कोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी थी। मामला 14 दिसंबर 2016 का है। एक नाबालिग लड़की की मां ने पुलिस के सामने बयान दिया था कि आरोपी उनकी 12 साल की बेटी को कुछ खिलाने के बहाने ले गया और उसके साथ गलत हरकत की। उसके कपड़े खोलने की कोशिश की और उसके अंदरूनी अंग को कपड़े के ऊपर से दबाया। निचली अदालत ने मामले में पोक्सो के तहत आरोपी को दोषी करार दिया और तीन साल कैद की सजा सुनाई।
इसके बाद अपील में हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के आदेश में बदलाव किया और मामले को पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट न मानकर, इसे आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ माना था। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि बिना कपड़े हटाए ये मामला पोक्सो के तहत सेक्सुअल असॉल्ट का नहीं बनता।