'बलात्कार नहीं है शादी का वायदा करके बनाया गया शारीरिक संबंध'
- महेश गुप्ता
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि शादी करने के वायदे से पीछे हटना हर मामले में रेप नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही रेप के एक मामले में 10 साल कैद की सजा पाए आरोपी को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर मामले को शादी का झूठा वादा कर रेप करने का मामला मानकर आरोपी को सजा देना मूर्खता होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि आरोपी ने शादी का वादा दिया हो और यह वादा पूरी गंभीरता से होगा। लेकिन बाद में कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी होंगी कि वह आरोपी के कंट्रोल के बाहर होगा और इस कारण वह वादा पूरा नहीं कर पाया हो। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने आरोपी को बरी करते हुए उक्त टिप्पणी की।
मौजूदा मामले में शिकायती महिला पहले से शादीशुदा थी और उसके तीन बच्चे थे। आरोपी उत्तम नगर दिल्ली इलाके में किराये पर रहता था, जिसने महिला के घर के पास किराये का घर ले रखा था। दोनों में जान-पहचान हुई और महिला उसे पसंद करने लगी। बाद में दोनों में शारीरिक संबंध बनने लगे। इस कारण दोनों को एक बच्चा भी हुआ। महिला साल 2012 में आरोपी के गांव गई तो पता चला कि वह शादीशुदा है और बच्चे भी हैं। महिला ने 2014 में अपने पति से तलाक ले लिया और अपने तीनों बच्चों को उसके पास छोड़ आई। इसके बाद महिला ने 21 मार्च 2015 को आरोपी के खिलाफ शिकायत की कि आरोपी ने उसके साथ शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाए। आरोपी को 10 साल कैद की सजा हुई, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में पेश तथ्यों के आधार पर कहा शिकायती महिला शादीशुदा थी और वह तीन बच्चों की मां थी। इस तरह वह काफी मैच्योर थी, परिस्थितियों और नतीजों से वाकिफ थी। शादी में रहते हुए वह आरोपी के साथ रही और दोनों के बीच संबंध के बाद बच्चा भी हुआ। उस वक्त उसने कोई शिकायत नहीं की। वह 2012 में आरोपी के गांव भी गई और पता चला कि आरोपी शादीशुदा है और बच्चे भी हैं, लेकिन तब भी शिकायत नहीं की और आरोपी के साथ रही। 2014 में उसने पति से तलाक लिया और बच्चों को उसके पास छोड़ा। फिर 2015 में आरोपी के खिलाफ शिकायत तब की, जब दोनों में कुछ विवाद हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायती महिला ने शारीरिक संबंध बनाने के लिए जो सहमति दी है, वह गलतफहमी में नहीं दी और इस आधार पर आरोपी को धारा-376 में दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दिल्ली की निचली अदालत और हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। आरोपी को 10 साल कैद की सजा दी गई थी, जिसे खारिज करते हए सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरी कर दिया।