तेलंगाना हाईकोर्ट ने मोहम्मद अब्दुल समद को अपनी तलाकशुदा पत्नी को हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने के आदेश दिया था, हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी अपील।

सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को लकेर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अहम निर्णय में फिर साफ किया है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक मुस्लिम महिला भी पति से गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है. एक मुस्लिम शख्श ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस याचिका पर बुधवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने गुजारा भत्ता को लेकर अहम फैसला दिया है. मोहम्मद अब्दुल समद नाम के शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने के निर्देश के खिलाफ मोहम्मद अब्दुल समद के जरिए दायर याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने माना कि 'मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986' धर्मनिरपेश कानून पर हावी नहीं हो सकता है. जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस मसीह ने अलग-अलग, लेकिन सहमति वाले फैसले दिए. हाईकोर्ट ने मोहम्मद समद को 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था

जस्टिस नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, "हम इस निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील खारिज कर रहे हैं कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होती है, न कि सिर्फ शादीशुदा महिला पर."

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि अगर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन के लंबित रहने के दौरान संबंधित मुस्लिम महिला का तलाक होता है तो वह 'मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 2019' का सहारा ले सकती है. कोर्ट ने कहा कि 'मुस्लिम अधिनियम 2019' सीआरपीसी की धारा 125 के तहत उपाय के अलावा अन्य समाधान भी मुहैया कराता है.